बाल व्यास पंडित वेदांत जी महाराज द्वारा पहल
संकल्प
बाल व्यास जी का मानना है कि भगवान श्रीराम ही हमारी सनातन संस्कृति के नायक हैं। साक्षात विग्रह हैं। अगर किसी को यह जानने की इच्छा हो कि हम सनातन संस्कृति को कैसे जिएं, अर्थात सनातन संस्कृति के आलोक में अपने जीवन का गठन कैसे करें, इसके प्रेरणास्रोत भी भगवान श्रीराम हैं। अनोखा व अद्वितीय। भगवान श्रीराम का जीवन पूर्णतया लौकिक धरातल पर है। एक स्त्री व पुरुष को अपने परिवार समाज व विश्व के सदस्यों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए, हमें मनुष्येतर जीवों से भी कैसा व्यवहार करना चाहिए, वह भी शिक्षा हमें भगवान श्रीराम के जीवन से मिलती है। धैर्य, क्षमा, दया, सहनशीलता, कमजोरों के अधिकारों की रक्षा, शौर्य, पराक्रम आदि सद्गुणों का पूर्ण विकास भगवान श्रीराम से पूर्णतया परिलक्षित होता है। यह सद्गुण तो पूरी मानवता की धरोहर है। बाल व्यास जी कहते हैं कि हम जैसा चिंतन बार-बार करते हैं, वैसा ही हमारा जीवन स्वरूप लेता है। अतः बाल व्यास जी के सानिध्य में ‘रामायण मंच’ का उद्देश्य है कि रामायण तथा श्रीरामचरितमानस के ऐसे श्लोक व चौपाइ, जिनसे हमें कुछ संदेश मिलता है और जो हमारी लौकिक समस्याओं का भी समाधान करता है, उनके प्रति बच्चों में चेतना जागृत की जाए तो हम सभी के लिए अत्यंत शुभकारी होगा। यही वो पुनीत कार्य और सूत्र हो सकता है जिससे हम आने वाली पीढ़ी को सुसंस्कृत भी कर सकते हैं।
कार्यान्वयन
रामायण रिसर्च काउंसिल के तत्वावधान में बाल व्यास जी ने प्रकल्प ‘रामायण मंच’ यू-ट्यूब चैनल का निर्माण करवाया है, जिसके निम्न उद्देश्य हैं-
1. स्कूली बच्चों में अनुशासन, संस्कार एवं सांस्कृतिक मूल्यों की भावना को बढ़ाते हैं ताकि वो अपने परिवार में, समाज में अच्छा व्यवहार कर सकें तथा आगे चलकर एक अच्छा इंसान बन सकें।
2. श्रीरामचरितमानस के प्रसंगों को डिजिटल रूप में अनोखे रूप से प्रसार के लिए गायन, वादन व नृत्य की प्रतिभा का विकास।
3. नाट्य मंचन, डिजिटल रामायण व छोटे-छोटे प्रसंगः जैसे- केवट-श्रीरामजी संवाद, माता शबरी और श्रीरामजी का संवाद, भगवान श्रीरामजी के द्वारा नागरिकों को संदेश, आदि आधारित विषयों का ज्ञानवर्धक प्रस्तुतीकरण।
4. विद्यालयों तथा शिक्षण संस्थानों को ‘रामायण मंच’ से जोड़कर उनमें सांस्कृतिक चेतना के विकास के साथ श्रीअयोध्याजी में श्रीरामलला मंदिर व अन्य पौराणिक स्थानों का दर्शन तथा श्रीरामजी के जीवन-दर्शन से अवगत कराना।
5. विद्यालयों तथा शिक्षण संस्थानों में समय-समय पर बच्चों के बीच इन्हीं विषयों से संबंधित प्रतियोगिता का आयोजन एवं बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए पुरस्कार आदि प्रदान करना।
6. एक सफल, दायित्ववान, ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण व विभिन्न मानवीय गुणों से विभूषित व्यक्तित्व का निर्माण।
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